Saturday 21 April 2012


   एक मित्र ने हिंदी बोलते समय कुछ अंग्रेजी शब्दो के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति की, मन  को यह बात बहुत चुभी, हिंदी कोई मृत भाषा नहीं .....यह तो अत्यंत जीवंत भाषा  है जिसमें अनेक भाषाओँ के शब्दों को स्वयं में समाहित करने की क्षमता है ....अन्य भाषाओँ के  शब्दों को हटा दिया जाए हो हिंदी ही न बचे .......किसी भाषा से उसकी व्यावहारिकता का गुण छीनना एक अपराध है ...........

संस्कृत की गंगोत्री से निकली 
हिंदी गंगा की धारा
अमय रस से अपने 
जन- मन सिंचित कर डाला
सब को समाहित कर स्वयम् में
हुई विस्तृत इसकी धारा 
किसी भाषा ने  इसके 
प्रवाह में अवरोध न डाला,
फिर क्यों कुछ रूदियों में बांध कर 
इसकी गति में रोध हम डाले 
भाषा से सहजता का गुण छीन 
क्यों किलिष्ट उसे कर डाले

कितनी ही जलधाराओं को 
खुद में समेट
गंगा गंगा ही रहती है 
वैसे ही कुछ शब्दों के प्रभाव से 
हिंदी क्या हिंदी न रहती
तो
संकुचित  मानसिकता को त्यज 
भाषा को दें व्यावहारिक रूप 
सुन्दर है यह भाषा इतनी 
ना बनाएँ इसको दुरूह
ललीत जोशी

ललीत जोशी

Friday 6 April 2012

सभी ब्लागर को हनुमान जयन्ती की र्हादीक शुभेछा