Monday 5 November 2012

जो कुछ प्राप्त हो जाये उसी में सन्तुष रहना और सुख हो या दुःख या फिर अमीरी हो या गरीबी या फिर मान हो या अपमान हर स्थिति में हो सामान रहता है और अपने ही आत्मा में जो रमण करता है वो योगी मानने योगय है. भगवान श्री कृषण गीता में ये कहते हैं. संसार में असल में सुख है ही नहीं. हर कोई किसी न किसी संकट और दुःख के चिंता में डूबा है. जिसे एक मकान है वो कोठी के चक्कर में हैं, जिसे एक कार है वो और कोई दूसरा मॉडल नयी कार लेने के लिए परेशान है. जिसे एक व्यापर है वो और कोई बड़ा व्यापर करने के चक्कर में है ताकि और बड़ा धनि कहलाये. कोई रोटी के लिए परेशान है तो कोई धोती के लिए परेशान है. किसी को अनेक रोग सताए है. कोई अपने पुत्र और पुत्री से परेशान है तो कोई अपने निर्धनता से और कर्ज परेशान है. मतलब की कोई अपने को सुखी और हर चिंता से परेशान नहीं है, ऐसा नहीं कह सकता. इसलिए कहा गया है की "नानक दुखिया सब संसार सुखी वही जो राम के दास".सभी दुखी है इस सन्सर में............

ललीत जोशी