Tuesday 11 October 2011

माँ

कमर झुक गई

माँ बूढ़ी हो गई

प्यार वैसा ही है

याद है

कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबककर

माँ ने पोंछे आँसू

खुरदरी हथेलियों से

कहानी सुनाते-सुनाते

चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर

सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताज़ा मक्*खन

रात में सुनाई

सोने के लिए लोरियाँ

इस उम्र में भी

थकी नहीं

माँ तो माँ है।

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